Thursday, September 4, 2008

रचनाकारगत आलोचना


* कबीर विशेषांक

* तुलसीदास की प्रासंगिकता

* तुलसी का लोकमंगल

* कवि भूषण की रचनाधर्मिता

* प्रेमचंद की कहानियों की प्रासंगिकता

* प्रेमचंद और दलित-प्रसंग

* सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’

* निराला : सही अध्ययन दृष्टि

* महादेवी का सर्जन : प्रतिरोध और करुणा

* नागार्जुन : एक आत्मीय रचनाकार

* नागार्जुन के काव्य की भावभूमि और भाषा

* कवि केदारनाथ अग्रवाल की राजनीतिक दृष्टि

* दिनकर की काव्यचेतना: पूनर्मूल्यांकन

* वर्तमान की पहचान समझ और संवेदना (हरिशंकर परसाई के संदर्भ में)

* बद्रीनारायण: कठिन समय का कविकर्म

* कात्यायनी की कविता पर एक सृजन-दृष्टि

1 comment:

प्रदीप मानोरिया said...

बहुत सटीक लिखा है आपने हिन्दी ब्लॉग जगत में आपका हार्दिक स्वागत है निरंतरता की चाहत है समय निकाल कर मेरे ब्लॉग पर भी दस्तक दें

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