Wednesday, September 3, 2008

शब्द पथ

> लेखक के चित्त में कल्पना अथवा विचार एक प्रकार की धारा है, जो वाणी के द्वारा वेग के साथ बह निकलती है. 'कल्पना' और 'विचार' उसके अंत:करण के निवासी हैं जो शब्दों के रूप में परिवर्तित होकर, जैसे भाप जल के रूप में परिवर्तित हो जाता है, उसके मुख से निकल पड़ते हैं और उसके चित्त को एक तरह से हल्का कर देते हैं. उसके चित्त की अवस्था और प्रवृत्ति, उसका आंतरिक स्वभाव सौन्दर्य, तथा उसके विवेचन की सूक्ष्मता और शक्ति इत्यादि उसकी भाषा में प्रतिबिम्बित हो जाते हैं.


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> शब्द सार्थक होते हैं कर्म से. साथ ही अपने शब्दों को कर्म से सार्थक बनाने वाले रचनाकार दुर्लभ होते हैं. इस बात की भी कोई गारंटी नहीं कि शब्द को कर्म से सार्थक बनाने वाला रचनाकार उत्कृष्ट साहित्य रचे.


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> मोहक गीत में कल्पनाओं को जगाने की बड़ी शक्ति होती है. वह मनुष्य को भौतिक संसार से उठाकर कल्पनालोक में पहुँचा देता है.

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