मैंने कहा - खट्टर काका, आप तो ऐसा दो टूक कह देते हैं कि जवाब ही नहीं सूझता. लेकिन देखिए, ये सातो चरित्र अमर समझे जाते हैं :-
अश्वत्थामा बलिर्व्यास: हनूमांश्च विभीषण:
कृप: परशुरामश्च सप्तैते चिरजीविन:
खट्टर काका मुस्कुराकर बोले - इस श्लोक का असली तात्पर्य समझे? दरिद्र ब्राह्मण, मूर्ख राजा, खुशामदी पंडित, अंध भक्त, कृतघ्न भाई, दंभी आचार्य एवं क्रोधी विप्र -- से सातों चरित्र इस भूमि पर सदा विद्यमान रहेंगे. यह देश का दुर्भाग्य समझो.
#हरिमोहन झा कृत
खट्टर काका का एक अंश
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पवित्रता ऐसी कायर चीज़ है कि सबसे डरती है और सबसे अपनी रक्षा के लिए सचेत रहती है. अपने पवित्र होने का अहसास आदमी को ऐसा मदमस्त बनाता है कि वह उठे हुए साँड की तरह लोगों को सींग मारता है, ठेले उलटाता है, बच्चों को रगेदता है. पवित्रता की भावना से भरा लेखक उस मोर जैसा होता है जिसके पाँव में घुँघरू बाँध दिये गये हों. वह इत्र की ऐसी शीशी है जो गंदी नाली के किनारे की दुकान पर रखी है. यह इत्र गन्दगी के डर से शीशी में ही बन्द रहता है.
#हरिशंकर परसाई कृत
पवित्रता का दौरा का एक अंश
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यह सभा प्रस्ताव करती है कि सरकार से यह प्रार्थना की जावे कि संसार में सबसे बड़े शांति-स्थापनकर्ता को जो नोबेल प्राइज मिलती है, वह सबसे बड़े आलसी को दिया जावे; क्योंकि आलसियों के बराबर संसार में दूसरा कोई भी शांति-स्थापनकर्ता हो ही नहीं सकता. यदि यह इनाम काम करने वाले शक्तिशाली पुरूष को दिया जावेगा, तो वह कैंसर की भांति संसार में युद्ध की ज्वाला को प्रचंड कर पुरस्कार-दाता की आत्मा को दु:ख देगा.
# गुलाबराय,
आलस्य भक्त का अंश
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चरखा तो गांधी जी का सुदर्शन चक्र ही ठहरा. औरतें तो उसे लेने के लिए मार करने लगीं, तो बिरला जी ने कहा कि इसका सीधा संबंध मिलों से है. बापू की यही इच्छा थी कि अब मिलों की जगह चरखा ही चले. विदेशी कपड़ों का मुकाबला इसी के द्वारा संभव है. नेताओं ने भी सिर हिलाया और वह चक्र बिरला जी के हाथ पड़ा. सुनते हैं कि यह अब उचित हाथ में पड़कर इतना महीन कपड़ा बुनने लगा है कि पहनने पर मालूम ही नहीं पड़ता. बिरला जी का कहना है कि देश में सबके शरीर पर काफी कपड़ा हो गया है लेकिन वह इतना महीन है कि लोग नंगे दिखाई पड़ते हैं. करामात चरखे की! द्रौपदी की लाज वही बुनता है!
# नामवर सिंह,
बापू की विरासत का अंश
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