यह धरती है उस किसान की
जो बैलों के कंधों पर
बरसात घाम में
जुआ भाग्य का रख देता है,
खून चाटती हुई वायु में
पैनी कुसी खेत के भीतर
दूर कलेजे तक ले जाकर
जोत डालता है मिट्टी को.
________केदारनाथ अग्रवाल
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कविता में कहने की आदत नहीं
पर कह दूँ
वर्तमान समाज में चल नहीं सकता
पूँजी से जुड़ा हुआ हृदय बदल नहीं सकता
स्वातंत्र्य व्यक्ति का वादी
छल नहीं सकता मुक्ति के मन को
जन को.
___________ मुक्तिबोध
Wednesday, September 3, 2008
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- September (17)
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