Wednesday, September 3, 2008

चंद पंक्तियाँ

यह धरती है उस किसान की

जो बैलों के कंधों पर

बरसात घाम में

जुआ भाग्य का रख देता है,

खून चाटती हुई वायु में

पैनी कुसी खेत के भीतर

दूर कलेजे तक ले जाकर

जोत डालता है मिट्टी को.


________केदारनाथ अग्रवाल

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कविता में कहने की आदत नहीं

पर कह दूँ

वर्तमान समाज में चल नहीं सकता

पूँजी से जुड़ा हुआ हृदय बदल नहीं सकता

स्वातंत्र्य व्यक्ति का वादी

छल नहीं सकता मुक्ति के मन को

जन को.

___________ मुक्तिबोध

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